उसे अपनों का काला सच दिखाई क्यों नहीं देता - ग़ज़ल - सुखवीर चौधरी

अरकान: मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
तक़ती: 1222 1222 1222 1222

उसे अपनों का काला सच दिखाई क्यों नहीं देता,
वो बहरा तो नहीं है फिर सुनाई क्यों नहीं देता।

मुझे दुनिया की रस्में क़ैद खाने जैसी लगती हैं,
ख़ुदा इस क़ैद से मुझ को रिहाई क्यों नहीं देता।

कभी मैं भी लिखूँ कुछ शेर जो मशहूर हो जाएँ,
ख़ुदा मुझ को भी ऐसी तू बीनाई क्यों नहीं देता।

जिसे माँ बाप ने सब कुछ दिया लाकर कहीं से भी,
बुढ़ापे में वही बेटा दवाई क्यों नहीं देता।

कभी कोई पिता बेटी को ख़ुद पर बोझ ना समझे,
ग़रीबों को ख़ुदा इतनी कमाई क्यों नहीं देता।

भुलाकर दुश्मनी करने वो सबसे प्यार लग जाए,
उसे आकाश के जितनी ऊँचाई क्यों नहीं देता।

सुखवीर चौधरी - मथुरा (उत्तर प्रदेश)

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