प्रकृति संरक्षण - गीत - डॉ. शंकरलाल शास्त्री

महिमा है जो कुदरत की,
लहरें आई कुदरत की,
धरती माँ जो ओढ़े है,
हरियाली की चुनरी सी।

वेदों की ऋचाओं में,
हवाओं की फ़िज़ाओं में,
कण-कण में जो फैली है,
महिमा प्यारी कुदरत की।

अरण्यानी के सूक्तों में,
पृथ्वी के तो सूक्तों में,
कुदरत की गरिमा जो,
फैली सभी दिशाओं में।

आओ पेड़ लगाकर के,
कुदरत को बचा लें हम,
सभी संकल्प लें अब तो,
धरती को बचालें हम।

वनदेवों का अभिवंदन है,
वन्य-जीवों का है अभिवंदन,
वनराजा है बाघ हमारा,
वनरक्षक है बाघ हमारा।

बाघ नहीं तो वन भी नहीं हैं,
गर वन न हों तो बाघ नहीं है,
कुदरत की यह रीति निराली,
जीवों की यह सीख निराली।

डॉ. शंकरलाल शास्त्री - जयपुर (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos