संकट जगाता मानवता - कविता - डॉ. रवि भूषण सिन्हा

मानव पर जब संकट आता है,
मानवता जाग जाता है।
गली-गली या मुहल्ले हो
बुरा वक़्त जब आता है।
आँखों में खटकने वाला भी,
आँखों का तारा बन जाता है।।
मानव पर जब संकट आता है,
मानवता जाग जाता है।
महामारी हो या हो बंद की मार,
भूख जब भुखमरी बन जाता है।
तब पड़ोसी ही अपना पेट काट,
पड़ोसी का भूख मिटाता है।।
मानव पर जब संकट आता है,
मानवता जाग जाता है।
कोरोना जैसी महामारी में,
जब, घर-घर में लोग तड़पते हैं।
जान अपना जोखिम में डाल,
मानव ही मानव का जान बचाते हैं।।
मानव पर जब संकट आता है,
मानवता जाग जाता है।
भले ही देश, देश के दुश्मन होते हैं,
पर मानवता पर सब एक होते हैं।
महामारी में हर ज़रूरत की चीज़ें,
स्वेच्छा से एक-दूसरे को देते हैं।।
मानव पर जब संकट आता है, 
मानवता ‌जाग जाता है।
हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई,
में हम सब ख़ूब बटें हैं।
पर जब धर्म मानवता का आता है,
हमेशा एक दूसरे के लिए होते हैं।
मानव पर जब संकट आता है,
मानवता जाग जाता है।

डॉ. रवि भूषण सिन्हा - राँची (झारखंड)

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