पतंग की उड़ान - कविता - अंकुर सिंह

पतंग भरती जैसे उड़ान,
बढ़ेगा वैसे मेरा मान।
सफलता मेरे पंख होंगे,
खुला होगा मेरा आसमाँ।।

इरादे मेरे बुलंद होंगे,
लेता आज मैं ये सौगंध।
डगर भले हो मेरा दूभर,
क़दमों में ना होगा पाबंद।।

देख ऊँची पतंग उड़ान,
सपने भरते मेरे उफान।
मंज़िल नाप लूँगा पग में,
मन में उमड़ता ये तूफ़ान।।

उड़ूँगा जब नील नभ में,
सितारे होंगे दोस्त हमारे।
एक पल यहाँ दूजा वहाँ,
ऐसे होंगे दिवस हमारे।।

छुए सपने उड़ती पतंग,
मन में ऐसा मेरे उमंग।
सपने ख़ातिर उड़ने को,
फड़फड़ाते मेरे अंग अंग।।

रहे परिस्थिति जैसी भी,
रवि भांति चमकना मुझे।
ना रुकूँगा मैं कर्म रण से,
पतंग भांति उड़ना मुझे।।

गर तुम कुछ देना ही चाहो,
सहयोग के दो पल दे जाना।
अपने सकारात्मक शब्दों से,
मम पतंग ऊँची कर जाना।।

अंकुर सिंह - चंदवक, जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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