मैं शिव हूँ - कविता - डॉ. राजेश पुरोहित

मैं आदिदेव अजन्मा, मैं अविकारी अविनाशी हूँ।
ॐ स्वरूप में नित रहता, मैं श्रीराम की सेवा करता हूँ।।

सृष्टि के लिए मैं, सब कुछ करता हूँ मैं शिव हूँ।
मैं संहारक हूँ दुष्टों का, मैं असुरों का विनाश करता हूँ।।

त्रिनेत्र जब खुलते मेरे, प्रलय ही प्रलय करता हूँ।
ज्ञान रूपी तृतीय नेत्र से, अंधकार मैं हरता हूँ।।

समुद्र मंथन में निकले ज़हर से जब सृष्टि डरती है।
त्रिलोकों में भयंकर गरल, मैं ही पीता हूँ।।

मैं नीलकण्ठ बन दुनिया के दुख दर्द सह लेता हूँ।
तांडव कर सृष्टि को, पल पल सन्देश देता हूँ।।

त्रिशूल धारण करता, दैहिक दैविक भौतिक दुख हरता हूँ।
बाघाम्बर परिधान पहन, कैलाश पर निर्भीक रहता हूँ।।

अंग भभूत लगा कर में, शृंगार अजब का करता हूँ।
मरघट की याद दिलाता अंतिम सत्य नित कहता हूँ।।

ग्रीवा में भुजंग पहनता, विषधर का संग करता हूँ।
जिसे दुनिया ठुकरा दे, मैं उसकी पीड़ा हरता हूँ।।

महादेव आशुतोष शंकर बन, सारी शंकाएँ दूर करता हूँ।
मैं शंकर हूँ, मैं सबका कल्याण करता हूँ।।

डॉ. राजेश पुरोहित - भवानीमंडी, झालावाड़ (राजस्थान)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos