आदमी का आख़िरी रिश्ता
उन पेड़ की लकड़ी से
होता है जिनकी आग़ोश
में, जलकर इस तन को
राख होना है।
रिश्ता निभाने का सलीक़ा
तो उन पेड़ की लकड़ी को
आता है जो शव शैय्या पर बिछ कर,
ख़ुद जल के समा लेती है
देह को अपने साथ भस्म की ढेरी में।
इक मलाल रह जाएगा
चिता की लकड़ी को देख
ना पाऊँगा... ना ही शुक्रिया
अदा कर पाऊँगा,
उन लकड़ी का जिन्होंने आख़िरी वक़्त में हमें
संभाला है।
हर शख़्स का नाम लिखा
होता है उन अनजान,
अज्ञात लकड़ी पर जिस में जल के उसे स्वाह होना है,
जिस से उसका आख़िरी
रिश्ता होता है।
केवल जीत सिंह - मोहाली (पंजाब)