प्रेमचंद - कविता - सुधीर श्रीवास्तव

लमही बनारस में
31 जुलाई 1880 को जन्में
अजायबराय आनंदी देवी सुत
प्रेमचंद।
धनपतराय नाम था उनका
लेखन का नाम नवाबराय।
हिंदी, उर्दू, फ़ारसी के ज्ञाता
शिक्षक, चिंतक, विचारक, संपादक,
कथाकार, उपन्यासकार,
बहुमुखी, संवेदनशील प्रेमचंद
सामाजिक कुरीतियों से चिंतित
अंधविश्वासी परम्पराओं से बेचैन
लेखन को हथियार बना
परिवर्तन की राह पर चले,
समाज का निचला तबक़ा हो
या समाज में फैली बुराइयाँ
पैनी निगाहों से देखा समझा
क़लम चलाई तो जैसे
पात्र हो या समस्या
सब जीवंत सा होता,
जो भी पढ़ा उसे अपना ही
क़िस्सा लगा,
या अपने आसपास होता
महसूस करता,
उनका लेखन यथार्थ बोध कराता
समाज को आईना दिखाता,
शालीनता के साथ कचोटता
चिंतन को विवश करता
शब्दभावों से राह भी दिखाता।
अनेकों कहानियाँ, उपन्यास लिखे
सब में कुछ न कुछ समस्या
उजागर कर अपना स्वर दिया,
लेखन से जागरूकता का
जन जागरण किए।
'सोजे वतन' चर्चित हुई
मगर नबाब छिन गया,
ग़रीबों के हित चिंतक
महिलाओं के उद्धारक
प्रेमचंद नया नाम
'पंच परमेश्वर' से आया।
गबन, गोदान, निर्मला
कर्मभूमि, सेवासदन लिख
उपन्यास सम्राट हुए,
चर्चित कहानियों में
'सवा सेर गेहूँ' की 
'गुप्त धन' सी तलाश में
'ठाकुर के कुएँ' के पास
'बड़े घर की बेटी'
'बूढ़ी काकी' और 
'नमक का दरोगा' के सामने
'पूस की रात'
'ईदगाह' के मैदान में
ये 'शतरंज का खिलाड़ी'
'कफ़न' की चादर ओढ़
8 अक्टूबर 1939 को 
दुनिया को अलविदा कह गया,
परंतु अपनी अमिट छाप
धरा पर छोड़ गया,
प्रेमचंद नाम 
सदा सदा के लिए 
अमर कर गया।

सुधीर श्रीवास्तव - बड़गाँव, गोण्डा (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos