मैं चाहता हूँ - कविता - विपिन कुमार 'भारतीय'

मैं उड़ना चाहता हूँ
खुले आसमान में
आज़ाद पंछी की तरह।

स्वछंद, निर्बाद,
निर्विरोध।

ऐसे ही जैसे पंछी उड़ता है।

ना कहीं सीमाएँ
ना रूकावटे।

इस पेड़ से उस पेड़,
इस देश से उस देश।

मैं चूमना चाहता हूँ
उन हवाओ को
जो आती है
हर तरफ़ से
हर दिशा से
लेकर ख़ुशबू
हर जगह की,  हर मिट्टी की।

मैं छूना चाहता हूँ
प्रकृति के हर रंग को,
बिल्कुल बे-दाग़, निश्चल,
ना प्रदूषण ना गंदगी
ना हवाओं में ज़हर
ना गंदा पानी।

मैं गले मिलना चाहता हूँ
संसार के हर व्यक्ति के,
ना नफ़रतों का सैलाब
ना रंजिशो का दामन
ना भाषा का अंतर
ना रंगो का भेद
ना वर्ण ना जाती
ना कोई विच्छेद।

मैं गले मिलना चाहता हूँ।

विपिन कुमार 'भारतीय' - सहारनपुर (उत्तर प्रदेश)

Instagram पर जुड़ें



साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिए साहित्य से जुड़ी Videos