संदेश
पथ - कविता - जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद'
नित नए सपने गढ़ता है पथ न रुकता न थकता है पथ। मनुष्य की चाह है पथ, नई उम्मीदें नए हौसले कसता है पथ। कर्तव्य की राह है पथ, मेहनत का मिला…
दहेज - कविता - डॉ॰ रोहित श्रीवास्तव 'सृजन'
ये लताएँ कैसी जिन्हें बढ़ता देख बाग़बान चिंतित है हर पल सेवा की जिसकी वे फूलों सी लताएँ काँटों सा क्यों चुभती लताएँ ये ऐसी जिन्हें धन द…
हिंदी - कविता - समता कुमारी
हिंदी हमारी भाषा, हमारी शान हैं। हिंदी से ही हमारी पहचान है। चलो सब मिल कर, एक काम करें। हिंदी को मिलजुल कर, नया आयाम प्रदान करें। उत…
शुभे कूष्माण्डा जय हो - गीत - डॉ॰ राम कुमार झा 'निकुंज'
करें सुमंगल जग जन गण मन कूष्माण्डा माँ, कोरोना दावानल रिपु जग तारिणि जय हो। छल प्रपंच लिप्सा मिथ्या बन्धन अभिशापी, राग शोक परिताप व्यस…
राधा-कृष्ण की मीठी झड़प - कविता - गायत्री शर्मा 'गुँजन'
खिली हुई चंपा के जैसे अंग सुकोमल जिसके भाए। नख से शीख तक देख राधिका कृष्ण को तंज कसे ही जाए॥ कहो ऐ बालक! प्रश्न क्यों करते यमुना तट पर…
विजय कामना - कविता - सौरभ तिवारी 'सरस्'
स्वाँस है बाक़ी अभी, विश्वास है बाक़ी अभी। हरगिज़ विजय की कामना दिल से निकालूँगा नहीं, मैं हार मानूँगा नहीं। मैं हार मानूँगा नहीं॥ स्वाँस…
ये रिश्ते को बचाने के लिए क्या-क्या नहीं करता - ग़ज़ल - आयुष सोनी
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन तक़ती : 1222 1222 1222 1222 ये रिश्ते को बचाने के लिए क्या-क्या नहीं करता, मेरे जैसा यहा…
अँधेरे का ख़्वाब - कविता - इमरान खान
बादल की रोशनी में अँधेरे का ख़्वाब जगमगा रहा है। पीतल के ग्लास में सोने का पानी भरा जा रहा है। कोहरे की आवाज़ से नई भाषा का उदय हो र…
दहेज - बाल गीत - संजय राजभर 'समित'
गुड्डे-गुड्डी की शादी में, बच्चे सब शरारती हैं। कुछ बने हैं बाराती यहाँ, तो कुछ बने घराती हैं। कुछ नाच रहे हैं उछल-उछल, कुछ पीट रहे …
हे आदि सिंह वाहिनी! - कविता - राघवेंद्र सिंह | माँ चंद्रघंटा पर कविता
हे आदि सिंह वाहिनी! सुगंध दिव्य दायिनी। दिवस तृतीय रूप तुम, हो शक्ति का स्वरूप तुम। हो मातु तुम ही रक्षिका, हो दुष्ट-दैत्य भक्षिका। हो…
सुखद गृहस्थी की बुनियाद - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
सुखी गृहस्थ जीवन जीने की, होती सबकी अभिलाषा। बात गर हो इसकी बुनियाद की, उत्कृष्ट व्यक्तित्व से होती आशा। गृहस्थी की जब होती शुरुआत, द…
ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे - ग़ज़ल - डॉ॰ एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि'
अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन तक़ती : 212 212 212 212 ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे, दिल फिर भी हम लगाते रहे। हमारी ये दिवानगी …
अपना सुधार सर्वोत्तम सेवा - कविता - उमेश यादव
अपना सुधार सर्वोत्तम सेवा, सुखमय घर संसार है। स्वयं बदलना मानवता पर, बहुत बड़ा उपकार है॥ समझें मन के भावों को हम, सही मार्ग अपनालें। …
मैं पेड़ों से बतियाता हूँ - कविता - सतीश शर्मा 'सृजन'
पक्षी तितली जुगनू भँवरे, पुष्पों के संग मैं गाता हूँ। वन पर्वत खेत नदी सागर, मैं पेड़ों से बतियाता हूँ। न ऊँच नीच न जाति धरम, मिल करके …
सब इतिहास हो जाएगा - कविता - डॉ॰ विजय पंडित
एक दिन अचानक सब इतिहास हो जाएगा नदियाँ हवाएँ बादल घटाएँ पथरीली राहें मखमली फ़िज़ाएँ कहानियाँ क़िस्से और कविताएँ लिखे अल्फ़ाज़ अधूरे अहसास …
शहीद-ए-आज़म: सरदार भगत सिंह - कविता - आर॰ सी॰ यादव
सिंह गर्जना थी तुम में, साहस अदम्य, बल पौरुष था। माँ भारती के अमर पुत्र, बुद्धि विवेक अपर बल था॥ श्रेष्ठ विचारक, लेखक, चिंतक, वक्ता प्…
हे मातु ब्रह्मचारिणी! - कविता - राघवेंद्र सिंह
नमः नमः विहारिणी, हे मातु ब्रह्मचारिणी! दिवस द्वितीय पूजिता, हो मंत्रध्वनि हो कूजिता। है श्वेत ये मुखाकृति, स्वरूप सौम्य स्तुति। हो त्…
नवरात्रि - कुण्डलिया छंद - सुशील कुमार
माता दुर्गा का लगे, तीजा रूप महान। अर्धचंद्र है भाल पर, चंद्रघंटा सुजान॥ चंद्रघंटा सुजान, भुजा दस सोहे माँ के। मिट जाते सब पाप, करे दर…
हे माँ! उद्धार करो - गीत - गोकुल कोठारी
अज्ञान, तमस का रक्तबीज जो बढ़ता ही जाता है, नए कलेवर में दानव सेना, सचमुच जी घबराता है। हे मातुशक्ति! हे कल्याणी! फैला है कलुष उद्धार …
नवरात्रि - कविता - शेखर कुमार रंजन
दाएँ हाथ त्रिशूल लेकर, बाएँ हाथ कमल के फूल, बेटा के घर हर्ष से आना, जाना ना मइया तू भूल। बाएँ हाथ कमंडल रखना, दाएँ हाथ में माला, सर पर…
शैलपुत्री - कविता - डॉ॰ सरला सिंह 'स्निग्धा'
प्रथम वन्दित हैं शैलपुत्री, गाते गुण कर जोड़े चारण। बाएँ हाथ में कमल पुष्प, पार्वती माँ का नाम दूजा। खाली नहीं मनोरथ जाए, जिसने है मात…
हे हिमसुता! हे शैलजा! - कविता - राघवेंद्र सिंह | प्रथम शक्ति स्वरूपा माँ शैलपुत्री पर कविता
हे हिमसुता! हे शैलजा! हो पूज्य तुम प्रथम सती। हो श्वेत वस्त्र धारिणी, दिवस प्रथम है स्तुति। हो रात्रि नव में तुम प्रथम, दिवस प्रथम करे…
तेरे रूप अनेक हैं मैया - कविता - आशीष कुमार
तेरे रूप अनेक हैं मैया, हर रूप में हमको भाती हो। नवरात्रि में नौ दुर्गा रूप में, हम पर ममता लुटाती हो। तीनों लोक हैं काँपे तुमसे, जब श…
माँ तेरा सहारा - कविता - राकेश कुशवाहा राही
माँ तेरा जो एक सहारा हो जाए, तो यह मेरा जीवन सफल हो जाए। धन-वैभव सुख की मुझे चाह नहीं, बस तेरा दिव्य रूप साकार हो जाए। भटकता रहा है चह…
नवरात्रि की धूम - गीत - रविंद्र दुबे 'बाबु'
देखो-देखो रे नाचे मोर मैं भी नाचूँगी... देखो देखो रे नाचे मोर मैं भी नाचूँगी... नवरात्रि की धूम मची हैं करते नमन हम सब जन थाल सजा के…