प्रथम वन्दित हैं शैलपुत्री,
गाते गुण कर जोड़े चारण।
बाएँ हाथ में कमल पुष्प,
पार्वती माँ का नाम दूजा।
खाली नहीं मनोरथ जाए,
जिसने है माता को पूजा।
लाल पुष्प माता को भाए,
ख़ुशियों का होता कारण।
हिमालय सुता का पूजन,
करते देव दनुज मुनि सारे।
दुष्ट समक्ष कहाँ टिक पाते,
मातु शक्ति से सारे ही हारे।
वृषभ सवारी है माता की,
हाथ त्रिशूल किए धारण।
शरणागत जो माँ की आए,
धर्म अर्थ औ' मोक्ष है पाता।
नरनारी जो करते जयकारा,
खाली हाथ नहीं वह जाता।
प्रथम वन्दित हैं शैलपुत्री,
गाते गुण कर जोड़े चारण।
डॉ॰ सरला सिंह 'स्निग्धा' - दिल्ली