हे माँ! उद्धार करो - गीत - गोकुल कोठारी

अज्ञान, तमस का रक्तबीज जो बढ़ता ही जाता है,
नए कलेवर में दानव सेना, सचमुच जी घबराता है।
हे मातुशक्ति! हे कल्याणी! फैला है कलुष उद्धार करो,
हे आदिशक्ति! हे दुर्गे! अंत करो संहार करो।
झूठ, कपट का मकड़जाल है, फैल रहा है व्यापार,
और तिलिस्म की जकड़न से, सच्चाई की हो रही हार।
सज्जन सारे त्रस्त हुए हैं, हावी मायावी दानव हैं,
छद्म वेश में दिखते, कुछ यहाँ पर मानव हैं।
हे मातुशक्ति! हे कल्याणी! फैला है...
हे काली! हे खप्परवाली! अब तुम ही पहचान करो,
दूषित रक्त न रहे धरा में, माँ काली कल्याण करो।
हे माता! हे अष्टभवानी! भक्त करेगा यही पुकार,
मानव के लिए कठिन है, करना दानव को स्वीकार।
हे आदिशक्ति! हे दुर्गे! अंत करो...

गोकुल कोठारी - पिथौरागढ़ (उत्तराखंड)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos