दहेज - बाल गीत - संजय राजभर 'समित'

गुड्डे-गुड्डी की शादी में,
बच्चे सब शरारती हैं। 
कुछ बने हैं बाराती यहाँ,
तो कुछ बने घराती हैं। 

कुछ नाच रहे हैं उछल-उछल,
कुछ पीट रहे हैं थाली। 
कुछ बने हुए हैं जोकर तो,
कुछ करते रौब मवाली। 

अब आई शादी की बारी,
सब मंडप में बैठ गएँ।
मोनू गोलू माधव आशा,
दहेज पर सभी अड़ गएँ। 

धीरे-धीरे झगड़ा झंझट,
मारपीट की बारी थी। 
इतनी कड़वाहट बच्चों में,
क्यों सबकी मति मारी थी? 

लता जोर-जोर से रो पड़ी,
मुरारी बोला "क्या हुआ?"
"मेरी शादी कैसे होगी?"
लड़की का क्यों जन्म हुआ।"

सब बच्चे चिंतित घबराएँ,
अब इसका कुछ निदान हो।  
चलो चलें घर-घर समझाएँ,
दहेज प्रथा अवसान हो। 

संजय राजभर 'समित' - वाराणसी (उत्तर प्रदेश)

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