हे आदि सिंह वाहिनी!
सुगंध दिव्य दायिनी।
दिवस तृतीय रूप तुम,
हो शक्ति का स्वरूप तुम।
हो मातु तुम ही रक्षिका,
हो दुष्ट-दैत्य भक्षिका।
हो उन्मुखा ही युद्ध की,
हो तुम विजय ही क्रुद्ध की।
है भाल घण्ट चंद्र-इंदु,
है त्रिनेत्र केंद्र बिंदु।
है स्वर्ण सम मुखाकृति,
है दशभुजा की आकृति।
है कर कमल, गदा, त्रिशूल,
खड्ग, खप्पर, धनुष समूल।
है बाण, चक्र अस्त्र-शस्त्र,
है कर रहा ये जग प्रशस्त।
हो लाल वस्त्र धारिणी,
सकल जगत की तारिणी।
हे माँ! तुम्हीं हो सिंहप्रिया,
हो आदिशक्ति सुप्रिया।
हो तुम ही पाप नाशिनी,
हो दैत्य की विनाशिनी।
प्रचण्ड चण्ड की ध्वनि,
हो तुम यहाँ पराक्रमी।
हे चंद्रघंटा मातु तुम!
विराजो आज प्रात तुम।
सकल धरा पुकारती,
खड़ी लिए माँ आरती।
राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)