पथ - कविता - जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद'

नित नए सपने गढ़ता है पथ
न रुकता न थकता है पथ।
मनुष्य की चाह है पथ,
नई उम्मीदें नए हौसले कसता है पथ।
कर्तव्य की राह है पथ,
मेहनत का मिलान है पथ,
नित आगे बढ़ता है पथ।
जीवन का शृंगार है पथ,
कर्म का ऐलान है पथ,
हो हम भी ऊर्जावान,
सीख यही देता है पथ।
हारे नहीं विषमताओ से,
अनगिनत बाधाओं से,
बढ़ते रहे आगे यही सिखाता है पथ।
बढ़ना है आगे ही आगे,
मुड़कर हम पीछे क्यों झाके?
चलना है जब डगर-डगर,
करे, फिर क्यों अगर-मगर?
इसलिए
सर्वशक्तिमान है पथ,
आगे ही आगे बढ़ता है पथ, 
पथ-पथ-पथ पथ-पथ पथ।

जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद' - छावनी टोंक (राजस्थान)

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