ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे - ग़ज़ल - डॉ॰ एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि'

अरकान : फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
तक़ती : 212  212  212  212

ग़म छुपाते रहे मुस्कुराते रहे,
दिल फिर भी हम लगाते रहे।

हमारी ये दिवानगी भी देखो,
तुम को पाके हम इतराते रहे।

दिल-ओ-जान से चाहा तुम को,
बेसबब तुम हो कि रुलाते रहे।

हम पागल इस क़दर प्यार मे,
तुम बेवफ़ा हो कर डराते रहे।

कहीं छोड़ न दो साथ हमारा,
अक्सर सोच के घबराते रहे।

रुसवाई से तेरी बच के 'जैदि',
ख़ुद को ख़ुद से ही जलाते रहे।

डॉ॰ एल॰ सी॰ जैदिया 'जैदि' - बीकानेर (राजस्थान)

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