उड़ो तुम लड़कियों
छू लो आसमान
कर लो मुठ्ठी में सारा जहान
तोड़ दो दीवारे
जो रोकती हैं तुम्हे
छोड़ दो वो बंदिशे
जो बाँधती हैं तुम्हे
रूढ़ियों की रेखाएँ
समाज की सीमाएँ
सब तोड़ देना तुम
सदा आगे बढ़ना तुम
लेकर बल ऊर्जा का
विवेक बुद्धि और सत्य का
चलना निर्भीक होकर
अपना परचम लहराना तुम
कर्तव्यपथ पर चलना, पर
न झुकना दंभ के आगे
स्वाभिमान से जीना तुम
न शोषित बनो, न व्यथित रहो
अपना भाग्य अपने ही हाथों लिखो तुम
बदल दो परिभाषा को
मिटा दो शब्द अबला का
बन जाओ संबल सबका
आए कितनी भी बाधाएँ
ना कभी रुकना तुम
ना कभी हारना तुम
पा लो अपनी मंज़िल
हासिल करो अपना मुक़ाम
मिली है ये जो ज़िंदगी
कर लो उसे अपने नाम
कर लो उसे अपने नाम।
सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)