उड़ो तुम लड़कियों - कविता - सुनीता प्रशांत

उड़ो तुम लड़कियों - कविता - सुनीता प्रशांत | Hindi Kavita - Udo Tum Ladakiyon - Sunita Prasant
उड़ो तुम लड़कियों
छू लो आसमान
कर लो मुठ्ठी में सारा जहान
तोड़ दो दीवारे
जो रोकती हैं तुम्हे
छोड़ दो वो बंदिशे
जो बाँधती हैं तुम्हे
रूढ़ियों की रेखाएँ
समाज की सीमाएँ
सब तोड़ देना तुम
सदा आगे बढ़ना तुम
लेकर बल ऊर्जा का
विवेक बुद्धि और सत्य का
चलना निर्भीक होकर
अपना परचम लहराना तुम
कर्तव्यपथ पर चलना, पर
न झुकना दंभ के आगे
स्वाभिमान से जीना तुम
न शोषित बनो, न व्यथित रहो 
अपना भाग्य अपने ही हाथों लिखो तुम
बदल दो परिभाषा को
मिटा दो शब्द अबला का
बन जाओ संबल सबका
आए कितनी भी बाधाएँ
ना कभी रुकना तुम
ना कभी हारना तुम
पा लो अपनी मंज़िल
हासिल करो अपना मुक़ाम
मिली है ये जो ज़िंदगी 
कर लो उसे अपने नाम
कर लो उसे अपने नाम।

सुनीता प्रशांत - उज्जैन (मध्य प्रदेश)

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