गायत्री शर्मा 'गुँजन' - दिल्ली
राधा-कृष्ण की मीठी झड़प - कविता - गायत्री शर्मा 'गुँजन'
गुरुवार, सितंबर 29, 2022
खिली हुई चंपा के जैसे अंग सुकोमल जिसके भाए।
नख से शीख तक देख राधिका कृष्ण को तंज कसे ही जाए॥
कहो ऐ बालक! प्रश्न क्यों करते यमुना तट पर हम क्यों आए?
सुनो! माँ यमुना हैं हम सबकी प्रश्न तुम्हारा नहीं सुहाए॥
भ्रम में तनिक ना रहना ग्वाले बातों में ना राधा आए।
खड़े हैं आतुर उत्तर हेतु कृष्ण राधिका देख मुस्काए॥
सौंदर्यजगत के पुष्प हैं दोनो कामदेव जिन्हे देख लजाएँ।
नीलकमल सी नैनो वाली राधा रानी अड़ी ही जाए॥
प्रश्न पूछकर घिरे हैं कान्हा खरी-खरी खड़े सुनते जाएँ।
नैनों से मिले नैन कान्हा कहें बालिके क्रोध ना तुम पर भाए॥
चंचल यमुना वायु तरंगे वस्त्र उड़े हैं पायल थिरके।
नाकों के नकबेसर सुंदर चंपा अंग वायु से महके॥
बलखाती मदमाती चाल नागिन जैसे जिसके बाल।
पारिजात गल माला सोहे अंजन नैन हठीले चाल॥
मोहपाश में फँसे हैं कृष्णा जिनपर जग न्यौछावर रहता।
राधा-कृष्ण हैं बंधन तारण जग बुद्धि से जान ना सकता॥
यमुना की शीतल सी तरंगे तट से टकराती इतराती।
चंद्रमुखी सी प्यारी राधे देख मंद-मंद पवन मुस्काते॥
जाके मस्तक चूड़ामड़ी सोहे चंदा जिसको देख लजाए।
हँसी है प्यारी बोल कंटीले भ्रमरी जैसी तान सुनाए॥
रासेश्वर श्रीकृष्ण हैं श्यामल रासेश्वरी राधिका न्यारी।
राधा कृष्ण के मीठे करतब बातों में मिश्री सी प्यारी॥
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