सुखद गृहस्थी की बुनियाद - कविता - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा

सुखी गृहस्थ जीवन जीने की, 
होती सबकी अभिलाषा।
बात गर हो इसकी बुनियाद की,
उत्कृष्ट व्यक्तित्व से होती आशा।

गृहस्थी की जब होती शुरुआत,
दंपति के रूप में मिलता दो का साथ।
यौवन की उनपर होती ऐसी बरसात,
नन्हे-मुन्ने बच्चों का मिल जाता साथ।

सुखद जीवन की होती सबकी चाहत,
पर जैसा व्यक्तित्व, मिलती वैसी राहत।
उत्तम व्यक्तित्व के दंपति को होता प्राप्त, 
सुखशांति से जीने की मिलती सौग़ात।   

दंपति के किसी में हुई यह ख़राबी,
सुखी जीवन जीना पर जाता भारी।
धन-दौलत की क्यों न लगी हो झड़ी,
अशांति से जीने की होती वहाँ लाचारी।

उस घर का होता बड़ा बुरा हाल, जहाँ, 
दंपति दोनों का व्यक्तित्व होता ख़राब।
समृद्ध परिवार होते हुए भी घर में होता,  
शान्ति, प्रगति और लगाव का अभाव।

दुनिया में हर युग में महापुरुष आते रहे हैं,
अच्छे जीवन जीने का गूढ़ मंत्र बताते रहे हैं।
अपने को सुधारना तो अपने ही हाथ में हैं,
रोज़ कल पर निश्चय कर इसे टालते रहे हैं।

डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा - राँची (झारखंड)

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