हे मातु ब्रह्मचारिणी! - कविता - राघवेंद्र सिंह

नमः नमः विहारिणी,
हे मातु ब्रह्मचारिणी!
दिवस द्वितीय पूजिता,
हो मंत्रध्वनि हो कूजिता।

है श्वेत ये मुखाकृति,
स्वरूप सौम्य स्तुति।
हो त्याग और तपस्विनी,
हो ज्ञान की पयस्विनी।

धवल हो वस्त्र धारिणी,
सकल जगत की तारिणी।
है अक्षमाला एक हस्त,
हो ज्ञानदा ही तुम समस्त।

हो ध्यान साधना सकल,
हो तेज,त्याग तुम सफल।
हो भक्ति-शक्ति दायिनी,
हो वेद-मंत्र गायिनी।

हो तुम कमल विराजिनी,
कमण्डल हस्त धारिणी।
हो रुद्रप्रिय माँ अम्बिके,
हो आदिशक्ति साधिके।

विराजो आज रूप ले,
माँ दुर्गा का स्वरूप ले।
हो चहुँ दिशा में वंदना,
हो प्रेम की ही व्यंजना।

राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)

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