शहीद-ए-आज़म: सरदार भगत सिंह - कविता - आर॰ सी॰ यादव

सिंह गर्जना थी तुम में,
साहस अदम्य, बल पौरुष था।
माँ भारती के अमर पुत्र,
बुद्धि विवेक अपर बल था॥

श्रेष्ठ विचारक, लेखक, चिंतक,
वक्ता प्रखर, अद्भुत गुण था।
मन था शांत, ज्वाला थी उर में,
उच्च कोटि का सद्गुण था॥

देश घिरा जब निर्मम-निर्दय,
अंग्रेजी अत्याचारों से।
भारत माता चीख़ उठी थी,
संगीनों के घातक वारों से॥

गूँज उठा था आसमान भी,
इंक़लाब के नारों से।
सोई धरती जाग उठी थी,
रणबाँकुरों के हुँकारों से॥

धधक उठी उर में ज्वाला जब,
देश घिरा अँधियारों से।
बाँध कफ़न मर मिटे वतन पर,
डरे नहीं तलवारों से॥

शूल सदृश बन चुभ रहा था,
जलियाँवाला बाग हृदय में।
काकोरी के शूरवीर भी,
लीन हुए थे चिरनिंद्रा में॥

राजगुरु, सुखदेव साथ मिल,
साण्डर्स को उठा दिया।
असेंबली में देकर संदेश,
अपना पौरुष दिखा दिया॥

राष्ट्रभक्त, सच्चे प्रहरी बन,
क्रांति का सूत्रपात किया।
अंग्रेजी शासन से नहीं डरेंगे,
युवकों को नव राह दिया॥

मुखर हो उठी क्रान्ति देश में,
जनता में नवयौवन आया।
नौजवान संगठन बनाकर,
आज़ादी का बिगुल बजाया॥

चिरनिंद्रा में शांत सो गए,
अक्षय अचल यह नाम रहेगा।
नमन तुम्हें हे क्रांतिवीर!
तुम पर गौरव अभिमान रहेगा॥

आर॰ सी॰ यादव - जौनपुर (उत्तर प्रदेश)

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