हमारे पूर्वज - कविता - रमाकांत सोनी

परिवार की नींव है पूर्वज, संस्कारों के दाता है। 
वटवृक्ष की छाँव सलोनी, बगिया को महकाता है। 

सुख समृद्धि जिनके दम से, घर में ख़ुशियाँ आती। 
आशीषों का साया सिर पर, कली-कली मुस्काती। 

घर के बड़े बुज़ुर्ग हमारे, संस्कारों भरी धरोहर है।
धन संपदा क्या मायने, गुणों भरा सरोवर है। 

ख़ून पसीना बहा बहाकर, सींचा घर फुलवारी को। 
पुरखों ने अपने दम पर, महकाया हैं क्यारी को। 

पूर्वजों के यश वैभव को, दाग़ नहीं लगने देना। 
कीर्ति पताका दुनिया में, ज़रा नहीं रुकने देना। 

श्रद्धा भाव रख उनको, श्रद्धा सुमन चढ़ाए हम। 
भाव प्रसून अर्पित करके, आओ उन्हें नवाएँ हम।

रमाकांत सोनी - झुंझुनू (राजस्थान)

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