हे हिमसुता! हे शैलजा!
हो पूज्य तुम प्रथम सती।
हो श्वेत वस्त्र धारिणी,
दिवस प्रथम है स्तुति।
हो रात्रि नव में तुम प्रथम,
दिवस प्रथम करे नमन।
अरुण उदित मुखाकृति,
चतुर्दिशा में आगमन।
है भाल अर्द्ध चंद्र वह,
हो तुम त्रिशूल धारिणी।
यशस्विनी वृषारूढ़ा,
सकल जगत की तारिणी।
उपासना की युक्ति तुम,
हो कर कमल विराजिनी।
हो शान्ति का स्वरूप तुम,
हो तुम तिमिर की नाशिनी।
उमा हो रुद्र की प्रिया,
हो तुम शिवा हो रागिनी।
हो पुष्प और अर्चना,
हो शम्भू अर्धांगिनी।
विराजो आज शैलजा,
ले रूप दुर्गा का प्रथम।
हो चहुँ दिशा में वंदना,
है कर रहा ये जग नमन।
राघवेन्द्र सिंह - लखनऊ (उत्तर प्रदेश)