संदेश
ग्रीष्म - कविता - गिरेन्द्र सिंह भदौरिया 'प्राण'
टपक रहा है ताप सूर्य का, धरती आग उगलती है। लपट फैंकती हवा मचलती, पोखर तप्त उबलती है॥ दिन मे आँच रात में अधबुझ, दोपहरी अंगारों सी। अर्द…
माँ - कविता - संजय राजभर 'समित'
एक दिन मैं अपनी माँ से पूछा “माँ मेरे न रहने पर तेरी बहू कैसा व्यवहार करती है?” माँ चुप थी तब मैं सब समझ गया माँ यदि सच बोलेगी …
माँ - कविता - गणेश दत्त जोशी
माँ तो माँ है, माँ का कोई नहीं सानी, माँ मिठास है मिश्री की, माँ है गुड़ धानी। माँ से ममता, माँ से क्षमता, माँ ही तो है वो जो सबसे पहल…
माँ का आँचल - गीत - महेश कुमार हरियाणवी
थाम के दुःख का दामन, जो दुनिया दिखलाती हैं। सच, माँ तो केवल माँ है, हर दुखड़े हर जाती हैं॥ जिस आँचल के दूध तले, इस जीवन की आस पले। ला, …
अगर साथ देते जो - गीत - प्रमोद कुमार
अगर साथ देते जो, तुम भी हमारे, तो रख देते क़दमों में, दुनिया तुम्हारे। सरल सुखदायी, सुन्दर सुशील हो, निर्मल हो पावन ज्यूँ, गंगा के धारे…
प्यारी माँ - कविता - मेहा अनमोल दुबे
प्यारी माँ! तुम बहुत याद आती हो, जब दिन ढलता है, जब नवरात्र का दिपक जलता है, जब साबुदाने खिचड़ी कि ख़ुशबू उडती है, जब हृदय मे पीड़ा होती …
मैं हर महीने भीग जाती हूँ - कविता - सुधीरा
कुदरत के नियम को मैं अपनाती हूँ, हर बार दर्द में और ज़्यादा जीना सीख जाती हूँ, मैं हर महीने भीग जाती हूँ। लाल रंग का मेरी ज़िंदगी से गहर…
कालजयी निरंतरता - कविता - अनिल कुमार केसरी
ज़िंदगी बड़ी तेज़ दौड़ती है; निरंतर गतिमान वक़्त की रफ़्तार से भागती रहती है। बदलाव ज़िंदगी का अटूट हिस्सा है; और बदलते रहना ही ज़िंदगी …
व्यर्थ नहीं - कविता - सिद्धार्थ गोरखपुरी
आसान सी भाषा का कठिन शब्द दूजे की निगाह का ज्ञान लब्ध मेरा वैसे कोई अर्थ नहीं पर ज्ञान के माफिक... व्यर्थ नहीं। समरथ है बस नाम का समरथ…
शौचालय - अवधी गीत - संजय राजभर 'समित'
नाही शौचालय त् नाही गवनवा, मोरे सजनवा हे! मोरे सजनवा बनवा दीं बेचके गहनवा। नारी के सिंगार हऊवे, नारी के हया। ऐकरा बचा लीं राजा, ब…
थोड़े से सुख - कविता - सुरेन्द्र प्रजापति
मेरे पास थोड़े से सुख हैं बिल्कुल सफ़ेद पत्थरों की तरह कुछ काले चीकने कंकड़ जिसे सहेजता हूँ रोज़ एक परम्परा का निर्वाह करते हुए माँ बतलाई …
पाऊँगा लक्ष्य - हाइकु - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
१ पाऊँगा लक्ष्य बाधाओं को चुनौती दृढ़ संकल्प। २ पत्नी जीवन जैसे रेगिस्तान में नखलिस्तान। ३ अर्द्धांगिनी है जलती दीपशिखा जीवन-पथ। ४ कवि…
प्रेम - कविता - गणेश दत्त जोशी
सोचा भी नहीं न देखा है, मिला भी नहीं पर कोई गिला भी नहीं है, हाँ सच तो यही है वो जैसा भी है मेरा ही तो है। मेरे रोम-रोम में, मन के विस…
गहरी उदासी - कविता - प्रवीन 'पथिक'
तूफ़ान के थपेड़ों के बीच, फँसी मेरी ज़िंदगी! चाहती है आज़ादी; ताकि विचर सके स्वच्छंद आकाश में। बादलों के पीछे, जहाॅं कोई देख न सके। वाग…
जहाँ तक मुझे आ रहा है नज़र - ग़ज़ल - रज्जन राजा
अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल तक़ती : 122 122 122 12 जहाँ तक मुझे आ रहा है नज़र, न छाया बची है न कोई शजर। तपिस से बचेगा नहीं अब कहीं,…
बुद्ध पूर्णिमा - कविता - रतन कुमार अगरवाला 'आवाज़'
भगवान विष्णु के नवें अवतार, दिव्य शक्ति के आधार, संसार को किया था प्रकाशमय, बुद्ध थे ज्ञान के भंडार। वैशाख माह की पूर्णिमा, मनाते इस द…
ओ हंसिनी - कविता - सुनील शर्मा 'सारथी'
तेरे रूप का क्या बखान करूँ, तुम सुंदरता की मुरत हो, मृगनयनी सी आँखो वाली, चंचल और ख़ूबसूरत हो, गुलाब पंखुड़ी जैसे अधर और नेत्र तुम्हारे…
अंतिम सच - कविता - विक्रांत कुमार
अंतिम सच कुछ नहीं होता है ढूँढ़ते रहिए जीवन की संगीन परिकल्पनाओं में अपने सुख के दिन की व्याख्या ज़रूरत की तमाम चीज़ों पर निश्चिताओं का स…
जन्मों-जन्मों तक - कविता - जितेंद्र रघुवंशी 'चाँद'
रहे जीवन में ऐसी हलचल, चाँद की तरह बढ़ता रहे पल पल। ना हो दुखों से कभी तेरा सामना, माँगूँ मैं तो रब से यही कामना। जन्मों-जन्मों तक जन्…
बाबा बैद्यनाथ धाम - गीत - डॉ॰ रवि भूषण सिन्हा
ज्योतिर्लिंगों में है, एक लिंग, है वो बाबा बैद्यनाथ धाम। बाबा बैद्यनाथ धाम 2 मनोकामना लिंगों में है, एक लिंग, है वो बाबा बैद्यनाथ धाम।…
छप रहे हैं इतने क़िस्से रोज़ भ्रष्टाचार के - ग़ज़ल - श्याम सुन्दर अग्रवाल
छप रहे हैं इतने क़िस्से रोज़ भ्रष्टाचार के, हाशिये तक पर नहीं हैं गीत अब सिंगार के। ख़ून की होली की ख़बरें सुर्ख़ हैं इतनी यहाँ, रँग भी उड़न…
मैं मज़दूर - कविता - प्रमोद कुमार
बीती रात हुई सुबह की बेला, जीने का फिर वही झमेला, निकल पड़ा सिर बाँध अँगोछी, कमाने घर-परिवार से दूर। मैं मज़दूर, बेबस मजबूर! हिम्मत के …
जो ज़ुबाँ बेज़ुबान होती है - ग़ज़ल - भाऊराव महंत
जो ज़ुबाँ बेज़ुबान होती है, वो मरे के समान होती है। गर दग़ा एक बार खा लेती, ज़िंदगी सावधान होती है। तीर उसके इशारों पे चलते, हाथ जिसके कमा…
मैं महत्त्वपूर्ण हूँ - कविता - डॉ॰ रेखा मंडलोई 'गंगा' | मज़दूरों पर कविता
मज़दूर दिवस पर मज़दूर वर्ग भी समाज में महत्वपूर्ण हैं इस सम्मान की भावना के साथ उनके महत्व को दर्शाती कविता। कहने को मैं मज़दूर दीन हीन स…
लबों पे आया तेरा नाम जाने क्या बात है - ग़ज़ल - दिलीप सिंह यादव
अरकान : मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुफ़ाईलु फ़ाइलुन तक़ती : 2212 2212 1221 212 लबों पे आया तेरा नाम जाने क्या बात है, सपने में मैंने देखा…
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