माँ तो माँ है,
माँ का कोई नहीं सानी,
माँ मिठास है मिश्री की,
माँ है गुड़ धानी।
माँ से ममता,
माँ से क्षमता,
माँ ही तो है वो जो
सबसे पहले हमको जानी।
माँ के विना क्या अस्तित्व भला हमारा?
माँ से तो हमने सृष्टि है जानी।
माँ छाँव है
इस विराने में,
माँ ही तो बसती है
हर एक घराने में।
कहाँ भला मिलती है
माँ की सी मधुर बानी?
माँ की कल्पना हैं हम,
माँ है तो क्या ग़म।
एक माँ ही तो है,
जिसके लिए पुत्र राजा,
पुत्री है रानी।
गणेश दत्त जोशी - वागेश्वर (उत्तराखंड)