जो ज़ुबाँ बेज़ुबान होती है - ग़ज़ल - भाऊराव महंत

जो ज़ुबाँ बेज़ुबान होती है,
वो मरे के समान होती है।

गर दग़ा एक बार खा लेती,
ज़िंदगी सावधान होती है।

तीर उसके इशारों पे चलते,
हाथ जिसके कमान होती है।

बाप को यदि पछाड़ दे शावक,
शेर की उसमें शान होती है।

उसके पकवान लगते फीके-से,
जिसकी ऊँची दुकान होती है।

देश में एक साथ ही मेरे,
आरती और अज़ान होती है।

शेर जितना सँवारता है 'महंत'
शायरी नौजवान होती है।

भाऊराव महंत - बालाघाट (मध्यप्रदेश)

साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos