गहरी उदासी - कविता - प्रवीन 'पथिक'

तूफ़ान के थपेड़ों के बीच,
फँसी मेरी ज़िंदगी!
चाहती है आज़ादी;
ताकि विचर सके स्वच्छंद आकाश में।
बादलों के पीछे, 
जहाॅं कोई देख न सके।
वाग्जालों का धुँध,
फैलता है चारो तरफ़
जिसमे उसके भविष्य की आकृति
धुँधली नज़र आती है।
हवाओं का शर,
कानों से गुज़रता 
छलनी कर देता 
हृदय के सीने को।
विचारों का सैलाब,
सागर के गहरी उदासी में,
डूब जाता।
जीवन की अपूर्णता,
हज़ारों प्रश्नों के मध्य,
घेर लेती मुझे।
माँगती अपना अधिकार,
जिसे कभी चुका नहीं पाया।
और तब;
तेरा अश्रुपूरित चेहरा,
अपने पूर्ण अस्तित्व के साथ 
सामने आता है, जो
मेरा साहस और धैर्य,
चकनाचूर कर
बिखेर देता प्रारब्ध के पन्नों पर।
जिसकी कसक,
भयानक अंधड़ के रूप में;
समा जाती मेरी ऑंखो में।
और ला खड़ा करती मुझे
जीवन की उस अंतिम बिंदु पर,
जहाॅं,
रंगमंच पर 
आख़िरी बार पर्दा गिरता है।


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