अरकान : फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
तक़ती : 122 122 122 12
जहाँ तक मुझे आ रहा है नज़र,
न छाया बची है न कोई शजर।
तपिस से बचेगा नहीं अब कहीं,
कहाँ भागकर जाएगा ऐ बशर।
मैं कैसे बचूँगा तुम्हीं अब कहो,
दवा जब नहीं कर रही है असर।
लुटाता रहा जान जिस पर सदा,
कभी यार उसने नहीं की क़दर।
भटकता रहा दर-ब-दर ढूँढ़ता,
मिली ही नहीं आज तक वो मगर।
यूँ तब तक सनम ने हैं ढाए सितम,
कि जब तक गए हम न पूरा बिखर।
सभी को है मरना यहाँ एक दिन,
जहाँ कौन आया है होके अमर।
मचलता है दिल चूमने को इन्हें,
नहीं कम गुलाबों से तेरे अधर।
था आसाँ कभी जो तिरे साथ में,
बड़ा ही कठिन अब हुआ वो सफ़र।
रज्जन राजा - कानपुर (उत्तर प्रदेश)