कालजयी निरंतरता - कविता - अनिल कुमार केसरी

ज़िंदगी
बड़ी तेज़ दौड़ती है;
निरंतर गतिमान
वक़्त की रफ़्तार से भागती रहती है।
बदलाव
ज़िंदगी का अटूट हिस्सा है;
और बदलते रहना ही ज़िंदगी है।
अवकाश
इसे बिल्कुल नहीं भाता,
रुकना, यह नहीं जानती।
परिवर्तन
ज़िंदगी का अभाज्य अंग है;
उसे, बस बदलना आता है।
ज़िंदगी
अवकाश नहीं चाहती,
उसे, आराम पंसद नहीं।
वह जानती है
बस, चलायमान रहना,
बिना अवकाश,
वक़्त की गति से बदलते रहना,
रफ़्तार के साथ दौड़ना,
और...
वक़्त की कालजयी निरंतरता में,
अंततोगत्वा लीन हो जाना।

अनिल कुमार केसरी - देई, बूंदी (राजस्थान)

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