संदेश
अथक चलना होगा - कविता - राज कुमार 'नीरद'
बढ़ चला तू जिस पथ उस पर डग भरना कठिन तो है धूल भरे झंझावातों में वह पथ अदृश्य तो है तपिश भी है तपाने को तुझे उस पथ मृगमरीचिकाएँ भी है…
बेख़ुदी में सवाल करते हो - ग़ज़ल - शमा परवीन
अरकान : फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1212 22 बेख़ुदी में सवाल करते हो, तुम हमेशा कमाल करते हो। जब किसी राह में हो तुम मिलते…
राम जन्म - कविता - प्रवल राणा 'प्रवल'
राम जन्म की बेला में मन खो गया। प्रभु चरणों का दर्शन मुझको हो गया॥ माँ कौशल्या ने जब उपकार किया, प्रभु ने देखो अवधपुरी अवतार लिया। दशर…
ज्ञान बाँटने में नहीं कुछ खोने का डर - कविता - विनय कुमार विनायक
मैं शब्दों का हमसफ़र मैं शब्द की साधना करता हूँ मैं स्वर की अराधना करता हूँ अक्षर-अक्षर नाद ब्रह्म है मैं अक्षर की उपासना करता हूँ! मैं…
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे - गीत - श्याम सुन्दर अग्रवाल
सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे, धरती की माँग भर जल किसान गीत गाए रे, सावन के आँगन में मेघा घिर आए रे। खेतों में बीज पड़े, दानों ने मु…
माँ - कविता - रमेश चन्द्र यादव
घर पर शादी की तैयारी, सर पर आया कारज भारी। नेक सलाह हर पल दे मुझको, माँ दे दो कोई आज उधारी॥ पकड़ उँगली जिसकी मैंने, पग घरती पर रखना सीख…
जगत के कुचले हुए पथ पर भला कैसे चलूँ मैं? - कविता - हरिशंकर परसाई
किसी के निर्देश पर चलना नहीं स्वीकार मुझको, नहीं है पद चिह्न का आधार भी दरकार मुझको। ले निराला मार्ग उस पर सींच जल काँटे उगाता, और उनक…
एक सपना था - कविता - हेमन्त कुमार शर्मा
एक सपना था, जो जाग रहा। दूब पे बिखरी ओस का, स्पर्श जो था पाँओं को। विपन्नता से जीवनयापन का, कुल ज्ञान था गाँवों को। पेड़ों की एकांत स्…
तुम्हें जब भी देखा - कविता - नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन'
तुम्हें जब भी देखा बस तुम्हें देखा एकटक देखा जी भर देखा होकर देखा खोकर देखा तुम में तुम्हें जब भी देखा तो नहीं देखा घर परिवार समाज न…
तू ज़रा सब्र तो कर - कविता - अशोक योगी
जीत जाएगा जंग-ए-ज़िंदगी एक दिन, तू ज़रा जिगर में सब्र तो कर। निकलेंगे उजाले स्याह रातों से एक दिन, तू ज़रा मुश्किलों से अगर मगर तो कर। …
माँ देवकी की वेदना - कविता - शालिनी तिवारी
देवकी के सुन नैनों में फिर उठी, हुक कान्हा के दरस की, एक बार दिखला दे कोई झलक, एक हर बीते बरस की। पहले उसकी मुस्कान थी कैसी, कैसे आँखो…
माँ - दोहा छंद - शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली'
माँ को पूजिय रे मना धरि चरनन में शीश। सफल होय जीवन मनुज देहिं ईश आसीस॥ माता की रज माथ धरि बड़े बनत हैं लोग। आशिष ऐसो कवच है भागैं दुःख…
तेरी दावत में गर खाना नहीं था - ग़ज़ल - डॉ॰ राकेश जोशी
अरकान : मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन तक़ती : 1222 1222 122 तेरी दावत में गर खाना नहीं था, तुझे तंबू भी लगवाना नहीं था। मेरा कुरता पुराना…
तीज का त्यौहार - कविता - महेश कुमार हरियाणवी
शिव गौरा का मिलन पुनः, पावन प्रेम का द्वार है। छम-छम-छम मेघ पुकारे, ये तीज का त्यौहार है। ऊँचे-ऊँचे झूलों पर, झूली लचकतीं डाल हैं…
आठ पहर - कविता - प्रदीप सिंह 'ग्वल्या'
एक पहर खुली आँखों से सपना तुम्हारा अगले पहर यादों की झाँकियाँ, एक पहर शुद्ध लिखता जाता तुम्हें, अगले पहर ढूँढ़ू उसमें ग़लतियाँ। एक पहर…
साथ मुश्किल में भला कौन दिया करता है - ग़ज़ल - सुशील कुमार
अरकान : फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन तक़ती : 2122 1122 1122 22 साथ मुश्किल में भला कौन दिया करता है, ज़ख़्म भर जाए यहाँ कौन दुआ क…
करो! जिस लिए आए हो - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी
आज छह मासीय वैदिक गणित प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम संपन्न होने के अंतिम चरण में है; यानी परीक्षा हो रही है। चूँकि वैदिक गणित विषय है इसलिए वै…
ऐ ज़िंदगी! तू सहज या दुर्गम - कविता - श्याम नन्दन पाण्डेय
सही कहती थी अम्मा (मेरी माँ)– यूँ बात-बात पर ग़ुस्सा ठीक नहीं। इक दिन तो बढ़नी से पीटा गया। अपनी मर्ज़ी से ज़िंदगी नहीं चलती, झुकना और सहन…
सावन को आने दो - कविता - मयंक द्विवेदी
पतझड़ की अग्नि में जल जाने दो, विरह वेदना के स्वर गाने दो, हर शाख़-शाख़ हिसाब लेगी, समय सावन का आने दो। पर्ण-पर्ण छिन्न हो तो हो, शाख़-शा…
एक नई दिशा - कविता - प्रिती दूबे
हौसलों के पंख लगाकर, एक नई दिशा की ओर बढ़ो। सफलता की ऊँचाइयों को छूकर, एक नया समाज गढ़ो। तुम नहीं हो बेटों से कम, तुममे भी है हिम्मत औ…
तुम्हारा प्रेम - कविता - प्रवीन 'पथिक'
भावनाओं की उधेड़बुन में, मेरे दुर्बल मन को; विचारों की आँधी में तुम्हारा प्रेम; अपनी आग़ोश में ले तृप्त कर देता उफनती वासनाओं को। चाहत …
आज़ादी - मुक्तक - इन्द्र प्रसाद
गगन साक्षी शहीदों का मिली कैसे है आज़ादी। चूम फंदे लिए हंँसकर बढ़ाकर बाँह फौलादी। वतन की यज्ञशाला में बनाया हव्य शीशों का, शहीदों के अथक…
मैं भारत की स्वतंत्रता हूँ - कविता - राघवेंद्र सिंह
मैं विमुक्त, नव दिनकर जैसी, मैं भारत की स्वतंत्रता हूँ। नवल दिवस, नव उद्घोषित रव, सप्त सरित की पवित्रता हूँ। मुझमें जन-जन शुभेषणा है,…
सारे जग से प्यारा भारत - कविता - राहुल सिंह 'शाहावादी'
सारे जग से प्यारा भारत, यह सतियों का देश महान। उपजी जहाँ असंख्य शक्तियाँ, परिचित हैं सब देश जहाँन॥ जहाँ जान दी पद्मिनियों ने, कर्म न थ…
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