तुम्हें जब भी देखा - कविता - नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन'

तुम्हें जब भी देखा - कविता - नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन' | Prem Kavita - Tumhen Jab Bhi Dekha
तुम्हें 
जब भी देखा
बस तुम्हें देखा
एकटक देखा
जी भर देखा
होकर देखा
खोकर देखा
तुम में

तुम्हें 
जब भी देखा
तो नहीं देखा
घर
परिवार
समाज
नहीं देखा
कि क्या कहेंगे लोग
क्या होगा मेरा मज़ाक

तुम्हें
जब भी देखा
तो नहीं देखा
उद्धरण
नतीजा
सबक़
नहीं देखा
अतीत
वर्तमान
भविष्य
नहीं देखा
लोकोक्तियाँ
क़िस्से
मुहावरे
नहीं देखा
अर्थ
काम
समय
नहीं देखा
नहीं देखा 
सेहत
शरीर 
स्वार्थ 
नहीं देखा

तुम्हें
जब भी देखा
तो तुम्हें देखा

तुम्हें 
जब भी देखा 
तो देखा 
आश्चर्य से
लय से
भय से। 

नरेन्द्र सोनकर 'कुमार सोनकरन' - प्रयागराज (उत्तर प्रदेश)

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