करो! जिस लिए आए हो - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी

करो! जिस लिए आए हो - लघुकथा - ईशांत त्रिपाठी | Laghukatha - Karo Jis Liye Aaye Ho - Ishant Tripathi. परीक्षा पर हास्य लघुकथा
आज छह मासीय वैदिक गणित प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम संपन्न होने के अंतिम चरण में है; यानी परीक्षा हो रही है। चूँकि वैदिक गणित विषय है इसलिए वैरागी बन जाने के‌ मिथक से मुक्त गिने चुने मुट्ठी भर छात्रों की संख्या है। परीक्षा विलम्ब के पिटारे से निकल कर चल ही देती है कि यह क्या! दो परीक्षक बंडल छितराए परीक्षार्थियों के पूर्व की सत्रीय परीक्षा पुस्तिका जाँचने जुट गए।तीन परीक्षक की घमासान वार्ता वैदिक गणित के 'निखिलं नवत: चरमं दशत:' सूत्र को 'नवमं नवत: दशमं दशत:' बनाने में अनावश्यक योगदान दे रही है; यानी छात्रों का विषय से ध्यान भंग हो रहा है। उन्हीं परीक्षकों के पास बैठा परीक्षार्थी मनोज अनिच्छुक श्रोता बन सुन रहा है छात्रों के अंधकार भरे प्रयोजनों को...
पहला परीक्षक: सेशनल टेस्ट में तो उन्हीं बच्चों को नंबर मिलेगा जो कक्षा में उपस्थित होते थे। बाक़ी सबको 19-20। केवल एक दो ही तो आते थे।
(यह सुनकर मनोज का हृदय संगीत तीव्र होने लगा।)

दूसरा परीक्षक: महाविद्यालय नहीं आएँगे और नंबर बढ़वाने कतारबद्ध होकर खड़े हो जाएँगे, बुड़बक।

(तीसरा परीक्षक बड़े शालीन भाव से केवल इस तारक वार्ता का श्रोता रहा... अब हो भी क्यों न, व्याकरण व्यक्तित्व के दोष को भी शांत करती है, आत्मा से जुड़कर।)

मनोज: (अनिच्छित मन से, जैसे उसे मालूम हो कि वह ग़लत कर रहा है।) सर! जिस बच्चे ने लिखा है, क्या उसे भी कम अंक मिलेंगे?

पहला परीक्षक: (घूरकर स्पष्ट उत्तर न होने से अटकटाते हुए) वो‌ करो! जिस लिए आए हो!

मनोज तत्क्षण कुंठित मन से अपना मस्तक नीचे झुका काल्पनिक मित्र को सांत्वना के लिए बुलाने लगता है।
मनोज: क्यों मित्र, उपदेश केवल कमज़ोरों और छोटों के लिए ही होते हैं क्या? गोहटा जैसे शक्ल को समझ नहीं आता कि यह कोई उचित स्थान नहीं इन सब विषयों पर चर्चा करने की। छछुंदर की बुद्धि इनकी, क्यों कोई जाएगा महाविद्यालय जब यह प्राध्यापक पक्षपाती दृष्टि से अपनी कामचोरी छुपाने में व्यस्त हो। हमारे अंक कम किए जाएँगे केवल कक्षा में न आने के कारण। क्योंकि इनके दम्भ का खंडन जो होता है खाली कक्ष देखकर।
तो फिर पढ़ाते क्यों नहीं ऐसा कि छात्र तो छात्र अन्य जिज्ञासु भी इनकी छाया न छोड़ें। अरे! तब तो इनके तोंद का आकार कम हो जाएगा (मन में ठहाके लगाता है)।

ईशांत त्रिपाठी - मैदानी, रीवा (मध्यप्रदेश)

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