माँ को पूजिय रे मना धरि चरनन में शीश।
सफल होय जीवन मनुज देहिं ईश आसीस॥
माता की रज माथ धरि बड़े बनत हैं लोग।
आशिष ऐसो कवच है भागैं दुःख नहिं भोग॥
मातु-पिता के चरण में रे मन! प्रभु को वास।
रज माथे पावन धरौ जीवन बनै सुपास॥
शिव शरण सिंह चौहान 'अंशुमाली' - फ़तेहपुर (उत्तर प्रदेश)