सावन को आने दो - कविता - मयंक द्विवेदी

पतझड़ की अग्नि में जल जाने दो,
विरह वेदना के स्वर गाने दो,
हर शाख़-शाख़ हिसाब लेगी,
समय सावन का आने दो।
पर्ण-पर्ण छिन्न हो तो हो, 
शाख़-शाख़ जीर्ण हो तो हो,
जड़ असंतृप्त हो तो हो,
बस जड़ जमाए रहने दो,
हर शाख़-शाख़ हिसाब लेगी,
समय सावन का आने दो।
तप्त धरा तप्त गगन हो तो हो,
प्राण व्याकुल आकुल हो तो हो,
ना नीर हो ना अधीर हो,
विकट संकट सह लेने दो,
समय सावन का आने दो।
नव अंकुर प्रस्फुटित बेहिसाब होंगे,
कोमल किसलय बेमिसाल होंगे,
फूल सुगंधित लाजवाब होंगे,
फल भी तो रसभरे नायाब होंगे,
हर शाख़-शाख़ हिसाब लेगी,
समय सावन का आने दो।


साहित्य रचना को YouTube पर Subscribe करें।
देखिये हर रोज साहित्य से जुड़ी Videos