जीत जाएगा जंग-ए-ज़िंदगी एक दिन,
तू ज़रा जिगर में सब्र तो कर।
निकलेंगे उजाले स्याह रातों से एक दिन,
तू ज़रा मुश्किलों से अगर मगर तो कर।
घटाएँ फिर छाएँगी आसमाँ में एक दिन,
तू ज़रा हिज्र को ख़बर तो कर।
मंज़िले ख़ुद आएँगी चलकर एक दिन,
तू ज़रा परवाज़ बन सफ़र तो कर।
टूट जाएगा ग़ुरूर समंदर का भी एक दिन,
तू ज़रा शर संधान कर समर तो कर।
बहारें फिर आएँगी चमन में एक दिन,
तू ज़रा गुलिस्ताँ में अमन से बसर तो कर।
तेरी दास्ताँ भी पढ़ेगी दुनिया एक दिन 'योगी',
तू ज़रा अल्फ़ाज़ में असर तो कर।
अशोक योगी, नारनौल (हरियाणा)