तुम्हारा प्रेम - कविता - प्रवीन 'पथिक'

भावनाओं की उधेड़बुन में,
मेरे दुर्बल मन को;
विचारों की आँधी में
तुम्हारा प्रेम; अपनी आग़ोश में ले
तृप्त कर देता उफनती वासनाओं को।
चाहत की नदी को,
तुम्हारा प्रेम; बहा ले जाता;
सुदूर उस घाटी में,
जहाॅं कमल पूर्ण यौवन लिए 
विकसित होता है।
जीवन की अनिश्चितता को,
निश्चित दिशा देने में;
तुम्हारा प्रेम; पाथेय बनकर
भ्रमित पथिक के पथ को,
प्रशस्त कर देता है।
और 
जीवन के हर क़दम पर,
तुम्हारा प्रेम; परछाई बनकर
ऑंखों में प्रेम की मोती लिए,
पूर्ण समर्पण की भावना के साथ;
अपने होने का
सदा एहसास कराता है।


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