मैं शब्दों का हमसफ़र
मैं शब्द की साधना करता हूँ
मैं स्वर की अराधना करता हूँ
अक्षर-अक्षर नाद ब्रह्म है
मैं अक्षर की उपासना करता हूँ!
मैं लेखनी का मसीधर
मैं भावचित्र बनाता काग़ज़ पर
लेखनी से लिपि उकेरकर
मन के उद्गार को देता स्वर
मैं वाणी की वंदना करता हूँ!
मैं पुस्तकों का हूँ सहचर
पुस्तक के पन्नों को खोलकर
बंद विचारों को उन्मुक्त करता हूँ
पुस्तकों के लुप्त होने का डर
मैं पुस्तक रक्षण याचना करता हूँ!
मैं गीत गान ज्ञान का सौदागर
मैं गीत ज्ञान बेचता हूँ दर दर घूमकर
मैं बिना लाभ हानि का व्यापार करता हूँ
ज्ञान बाँटने से नहीं कुछ खोने का डर
मैं सत चित्त विस्तारण में रहता हूँ!
मैं हूँ पुस्तक पथ का राहगीर
पुस्तक है विनाश होने के कगार पर
लेकिन पुस्तक है शाश्वत अजर अमर
इंटरनेट की दुनिया भी पुस्तकों पर निर्भर
मैं पुस्तकों का अभिनंदन करता हूँ!
मैं ग्रंथ की ग्रंथि खोलने का पक्षधर
मैं ग्रंथ में ग्रहण लगना अस्वीकार कर
पूजता हूँ ग्रंथ मूर्तिमान ईश्वर समझकर
ग्रंथ में ग्रंथित ज्ञान हो सब जग ज़ाहिर
मैं ग्रंथ ज्ञान को नमन करता हूँ!
मैं श्रुति मंत्रकार का वंशधर
मैं वैदिक ज्ञान धरोहर का पहरेदार
मैं सामवेद गान का उद्गीतकार
संकल्पित वैदिक संस्कृति संभार
मैं माँ भारती को स्मरण करता हूँ!
विनय कुमार विनायक - दुमका (झारखंड)