संदेश
जनाजा उठ गया होता - मुक्तक - राहुल सिंह "शाहावादी"
जनाजा उठ गया होता, अगर देखा न होता। नजर के तीर का मारा, पङा रोता न होता। तुम्हारी इन अदाओं ने, शरा…
कमाल है - नज़्म - अंकित राज
इत्तेफ़ाक से हमारा मिल जाना.. कमाल है यूँ मेरी ज़िंदगी में तुम्हारा आना.. कमाल है दीदार की बड़ी हसरत है लेकिन बातों से दिल चुराना.. कमाल …
सील बट्टा - कविता - डॉ. राजकुमारी
मैं सिलबट्टा खरीद, चटनी रगड़ना चाहती हूँ फिर से पूरी शक्ति बल से उंगलियों से बट्टा पकड़ सील पर बहुत कुछ रगड़ना चाहती हूँ। मैं सील की छ…
अवसाद ग्रसित आहत बचपन - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
अवसाद ग्रसित आहत बचपन, आज़ाद वतन दुखार्त रुदन। रहती सत्ता सुखभोग मगन, जठरानल जल मर्माहत तन। पछताता शिशु क्रन्दित शैशव,…
बाल मजदूर - कविता - रवि शंकर साह
नन्हा - मुन्हा सा था मैं। नाजो से माँ ने ही पाला। माता पिता का राजदु लारा। नियति की ऐसी मार पड़ी। मैं हो गया अब अनाथ। कहते है अब सब हम…
अहंकार का पलायन - लघुकथा - उमाशंकर मिश्र
घुमडते हुए बादल हवाओं के सहारे कही जा रहे थे मानो उस किसान के खेत मे जिसे पानी की आवश्यकता थी प्रकृति सबकी आवश्यकताओ को ध्यान मे रखी थ…
खाली पेट की तस्वीरें - कविता - सूर्य मणि दूबे "सूर्य"
एक रोग है कंगाली भूख में दर्द बडा़ है हर आग बुझे पानी से पर पेट का आग बुरा है, भूख सात दिन बासी रोटी बस दो दिन पहले की कौन है ज्यादा…
बलात्कारियों पर अंकुश - लेख - चन्द्र प्रकाश गौतम
बदलते सामाजिक परिवेश में हमें अपने सोच को बदलने की जरूरत है। साथ ही हम सभी पुरुष वर्ग को अपनी पुरुषवादी मानसिकता को भी बदलने की जरूरत …
कवि हृदय - कविता - विनय विश्वा
कवि "मन" को है संवेदनाएं बेधती शर, शूल घाव बन कर है चुभती। रो पड़ी है कलम उनकी धार में कवि मन बोझिल हुई भावनाओं के भार में। …
नकली सुबह - कविता - कर्मवीर सिरोवा
सुबह हुई हैं क्या ये सच हैं या फिर ये भी कोई धोखा है आँखों का। अंधेरा भी कहाँ मरता हैं, हाँ, नकली उजाला फैला है। फ़क़त स्याह रात ढ़कने एक…
खुद को ही पाया - कविता - दीक्षा
उसके जिंदगी में आने से पहले मेरी रातें कुछ यूँ कटती थी किताबें, गाने और खुद में ही मेरी सारी दुनियां बसती थी इन चीजों से दूर एक बार एक…
अपनी मर्ज़ी से - ग़ज़ल - आलोक कौशिक
तुम मुझे लगती बहुत ही प्यारी हो सच-सच बताओ क्या तुम बिहारी हो। अब तो होने लगा है प्यार तुमसे लगता है मिट गई समझदारी हो। खुरच कर घायल…
लाल-लाल लट्टू नचाने वाला - आलेख - डॉ. अवधेश कुमार अवध
वक्त के साथ जमाना बदला और बदल गए बच्चों के सारे खेल भी। गुल्ली डंडा, आँख मिचौली, लट्टू नचाने से होते हुए विडियो गेम को पार कर जानलेवा …
आधुनिकता और संस्कार - लेख - दीक्षा अवस्थी
आज के इस आधुनिकतम युग में हमें संस्कृति, सभ्यता व संस्कारों को दरकिनार नहीं करना चाहिए। नैतिकता, शिष्टाचार हमारे जीवन में महत्वपूर्ण …
शोकाकूल स्तब्ध हूँ - कविता - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
निःशब्द मौन शोकाकूल स्तब्ध हूँ, क्रन्दित मन शर्मसार प्रश्नचिह्न हू्ँ। खो मनुजता कुकर्मी बस दंश बन, क्या कहूँ, क…
मौत के हकदार - गीत - समुन्द्र सिंह पंवार
जो करते बच्चियों से बलात्कार। वे हैं मौत के हकदार।। उनसे कैसी हमदर्दी, जो हैं बेगैरत बेदर्दी, जो करते इज्जत तार - तार। …
नारी की दुर्दशा - कविता - आशाराम मीणा
मानवता मर चुकी हैं, इन कलयुगी सरकारों में। हाथरस की गैंगरेप की, ना खबर हैं अखबारों में।। दलित की बेटी को क्या हक है मानवाधिकारों में।…
स्वास्थ्य से बड़ा कोई सुख नहीं - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
कहावत है, पहला सुख निरोगी काया। कोई भी आदमी तभी अपने जीवन का पूरा आनंद उठा सकता है जब वह शारीरिक और मानसिक रुप से स्वस्थ रहें। स्वस्थ …
बेटी की अभिलाषा - कविता - अरविन्द कालमा
अभिलाषा रखो घर में हो जान बेटी की। ना करो कोई भेदभाव सा व्यवहार बेटी से।। बलि दी जाती बेटी के अरमानों की और। कुल के सम्मान की उम्मीद र…
सुहागन - कविता - पूजा सिसोदिया "साधना"
सुहागन बन के आई थी तेरे घर, सुहागन बनके ही जाना चाहती हूँ। अर्थी का सिरा टिका हो तेरे कांधे, श्मशान तक सहारा पाना चाहती हूँ। रोज तुझे …
वृद्ध - कविता - रंजन साव
मैं उड़ता हूँ उड़ता ही जाता हूँ रूकता हूँ तो थक कर चूर हो जाता हूँ। शायद पेशानी की लकीरें उभर आई है। अब सालों बीत जाने पर उम्र ढल आई …
ज़िन्दगी के पल - कविता - पूनम बागड़िया "पुनीत"
हाँ.. मुझे याद है, ज़िन्दगी से मैंने, दो पल चुराये थे एक पल, जी भर हँसी, दूजे पल आँसू बहायें थे वक़्त के पेड़ से लटका है, हर एक पल जो टूट…
बापू तेरे देश में - कविता - मोहम्मद मुमताज़ हसन
गोरों को था मार भगाया तूने, आज़ादी का ध्वज फहराया तूने! दी कुर्बानी देश की खातिर , मिटे देशभक्ति के आवेश में! लेकिन अब क्या हो रहा है, …
बापू - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
शील त्याग गुण कर्म का, मानक था जो लोक। सत्य अहिंसा सारथी, गाँधी थे आलोक।। सहज सरल नित सादगी, मृदुभाषी सद्नीति। शान्ति दूत अतुलित प्रखर…
प्रकटे बापू - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
दो अक्टूबर महापर्व है, भारत के इतिहास में प्रकटे बापू भानु इसी दिन, धरा देख तम पाश में। सत्य अहिंसा व्रत को लेकर, चरख चक्र ले हाथ मे…
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