आशाराम मीणा - कोटा (राजस्थान)
नारी की दुर्दशा - कविता - आशाराम मीणा
शनिवार, अक्टूबर 03, 2020
मानवता मर चुकी हैं, इन कलयुगी सरकारों में।
हाथरस की गैंगरेप की, ना खबर हैं अखबारों में।।
दलित की बेटी को क्या हक है मानवाधिकारों में।
न्याय नहीं मिला है उसको, झूठी तारीफदारो में।।।
गाय गोबर की घटना, ब्रेकिंग न्यूज टीवी चैनलों में।
रिया सुशांत कंगना दीपिका, मुद्दा मनचलों में।।
देवी का दर्जा दिया था, भारत के मंदिरों में।
पूछ रही हैं मनीषा, न्याय मिलेगा इन दरिंदी में।।।
माना की वो मर चुकी थीं, थोड़ी घर से दूरी थी।
रात्तो में दाहसंस्कार किया, ऐसी क्या मजबूरी थी।।
कानून बिक चूक था, या कहानी कोई अधूरी थी।
क्या फर्क पड़ेगा इनको, कोई हीरोइन थोड़ी थी।।।
दामन तोड़ दिया दरिंदो, सीता ओर सावित्री का।
आँचल आँसू पूछ रहा है, मातृत्व की प्रवृत्ति का।।
लहू खोल रहा है रगो में, इंसान की मनोवृति का।
काला इतिहास लिखा जाएगा नारी तपोभूमि का।।।
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