सुषमा दीक्षित शुक्ला - राजाजीपुरम, लखनऊ (उत्तर प्रदेश)
प्रकटे बापू - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
शुक्रवार, अक्तूबर 02, 2020
दो अक्टूबर महापर्व है,
भारत के इतिहास में
प्रकटे बापू भानु इसी दिन,
धरा देख तम पाश में।
सत्य अहिंसा व्रत को लेकर,
चरख चक्र ले हाथ में।
मिटा दिया दासत्व कलुष तम
अंकित भारत माथ में।
भय का बिल्कुल नाम नहीं था,
सत्याग्रह आंदोलन में।
सारी जनता मुग्ध हुई थी,
महामंत्र के मोहन में।
भय से कांपे हिंसक शासक,
एक अहिंसक के आगे।
पीछे चली निहत्थी सेना,
चला संत आगे आगे।
भीषण लू चलती हो चाहे,
बरसे वर्षा का पानी।
निर्भय संत बढा जाता था,
पैरों में गति तूफानी।
पाप गुलामी से जब धरती,
त्राहि त्राहि थी चीख पड़ी।
मोहन ने तब गाँधी बनकर,
भारत माता मुक्त करी।
इसी दिवस तो शास्त्री जी भी,
भारत मे थे जन्मे।
धर्मवीर थे कर्म वीर थे,
सत्यनिष्ठ थे पक्के।
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