संदेश
बनो जगत आशा किरण - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
चलें सदा सत्कर्म पथ , रखें ताज़गी जोश। धीर वीर साहस प्रबल , कभी न खोएँ होश।।१।। सदा नयापन सोच हो , दृढ़त…
देश में पत्रकार का महत्व - कविता - मधुस्मिता सेनापति
सरकर की बात जो जनता तक पहुंचाता है, जनता के दुःख को जो सरकार तक पहुंचाता है, वह पत्रकार कहलाता है, वह पत्रकार कहलाता है......!! …
हिन्दी का पतन - कविता - अतुल पाठक
जगह जगह अंग्रेजी मीडियम स्कूल की लग गई खूब कतार हिन्द के देश में हिन्दी के संग हो रहा अत्याचार जहाँ देखों नज़र वहीं आता अंग्रेजी …
मै कैसे लिख दू - कविता - शेखर कुमार रंजन
मैं कैसे? लिख दू कि मेरे दोस्तों ने, दुश्मनों की हर फर्ज निभाई हैं उसने मुझे गिराने की कोशिश की, जिसे समझता रहा सगा भाई हैं। म…
गजल मेरी - कविता - मयंक कर्दम
बांसुरी संग वीणा से बजती ग़ज़ल मेरी, दूल्हे की दुल्हन सी चमकती गजल मेरी। बारात में पैदल चलकर हीरे-मोती पहने, बारातियों के संग यू…
चलो रचाएँ रास हम - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
लाल अधर सरसिज वदन, मृगनयनी गज चाल। पीन पयोधर शिखर सम, तन्वी नैन विशाल।।१।। लाल यशोदा भाल पर , मोर मुकुट अभिराम। देख …
अपनी अनुभूति - कविता - मधुस्मिता सेनापति
बदहवास है हवा की झोंके यह जिंदगी के उलझे हुए नशा यह संसार के अभावनिय स्थिति और मनुष्य के मन में भरी हुई अनगिनत चाहत........!! …
क्या लिखू - कविता - शेखर कुमार रंजन
कभी मन करता है कि, गरीबों की गरीबी लिखू तो कभी मन करता है कि, मजलूमों की बेबसी लिखू। कभी मन करता है कि, भ्रष्टाचारियों की करतू…
बिना फल फूलों वाले वृक्ष भी कम उपयोगी नही होते - आलेख - सुषमा दीक्षित शुक्ला
एक पेड़ की कितनी कीमत है जिसे लिखने के लिए पन्ने कम पड़ जाएंगे, सियाही भी कम पड़ जाएगी। हमारे भारत मे तो तमाम वृक्षो को देवता के …
प्रियतम - कविता - बजरंगी लाल
कलम रुक गई है, कागज भिगो रहा हूँ। आँखों से अपने अश्क का, दरिया बहा रहा हूँ।। होने ना पाए खारा, सागर ए इस ज…
भगवान - कविता - माधव झा
हाथ मे त्रिशूल, वसहा सवार, रोक लो अपनी जटा की धार, नही तो निकल पड़ेगे अब, सब भक्तों के प्राण भगवान, पहले तो कोरोना का मा…
मुस्कुराते रहो - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"
मुस्कुराते रहो, गुनगुनाते रहो प्यार में डूबकर नित नहाते रहो दीप का साथ बाती से छूटे नहीं तेल से बातियों को मिलाते रहो हो न पा…
जीने का नाम ही है जिंदगी - कविता - मधुस्मिता सेनापति
कल का दिन किसने देखा आज की बात सोचा करो बुरे सोच को त्याग मन से सत्य को अपनाने की कोशिश करो.....!! खुद से हिम्मत न हारो कभी स्…
पापा - कविता - अतुल पाठक
हम बच्चों के प्यारे पापा सबसे सच्चे हमारे पापा पूरी करते हमारी हर इच्छा उनके जैसा नहीं कोई अच्छा हम सबका स्वाभिमान हैं पापा स…
आखिरी चिराग़ बन जलती रही - कविता - सुषमा दीक्षित शुक्ला
ऐ! प्रियतम ,आज फिर आयी कहीं से तुम्हारी तड़पती पुकार, अश्रु धार से कपोल नम है मेरे, अवरुद्ध सा कण्ठ नयनों में नीर, सुलगती सी वि…
मैंने माँ की आँखों को नम देखा है - कविता - शेखर कुमार रंजन
माँ की तरह कोई प्यार करें ऐसा, दुनिया में मैंने बहुत कम देखा है भैया सुनो न दीदी सुनो न, मैंने माँ की आँखों को नम देखा है दुनि…
अरुणिम नित प्रेरक मनुज - दोहा - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
नयी भोर निर्भेद जग , मानव चित्त मयंक। अरुणिम नित प्रेरक मनुज , राजा हो या रंक।।१।। मधुरिम नित आचार हो …
आजकल किस की किससे यारी है - कविता - चीनू गिरि
आजकल किस की किससे यारी है, जुबान मीठी और दिल मे गद्दारी है! अपने मिलते यहां पहनकर नकाब, मानो झूठ बोलना कोई फऩकारी है! मेरी तो अ…
अब तो बता कोरोना - कविता - सतीश श्रीवास्तव
बहुत हो गया रोयें कहां तक बोलो अपना रोना, कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना। तुम आए तो बंद हो गये बड़े बड़े बाजार, आ धमके …
गुस्ताख़ दिल - ग़ज़ल - रोहित गुस्ताख़
हर पल इक पागल की खातिर ख़ाब सजाये कल की खातिर जिस पल में जीनी थीं सदियां आया वो इक पल की खातिर बेच गिटार हुआ दीवाना तेरी इस पा…
मैं कोई भगवान लगता हूँ - कविता - रवि कुमार रंजन
मत पूछ मेरी पहचान, मैं तो एक इंसान लगता हूं, क्या करोगे तुम जानकर मैं कोई भगवान लगता हूं। भगवान ने तो मुझे बनाया, मैं …
चाय की आत्मीयता - कविता - मधुस्मिता सेनापति
चाय तू भी कमाल कर जाती है थकावट के लिए तू दवा बनती है मन की पीड़ा को यूं ही मिटाती है चाय तू भी कमाल कर जाती है.......!! चाय तू…
दिल की जागीर - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"
हुस्ने तदबीर ही है कुछ ऐसी। दिल की जागीर ही है कुछ ऐसी। बस गई है वो जेहनो दिल में मेरे. उस की तसवीर ही है कुछ ऐसी। ख्वाब करता…
जब से मथुरा गया किशन - गीत - सुषमा दीक्षित शुक्ला
सावन में छायी हरियाली, भादों आया हरित बसन। राग रंग कुछ मुझे न भाता, जब से मथुरा गया किशन। सपना सा हो गया सभी कुछ, हुई कहानी …
उर की अभिव्यञ्जना - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
उर की अभिव्यञ्जना समझ, या समझ अन्तस्थल वेदना। अन्तर्व्यथा कथानक समझ, प्रमुदित समझ उर सद्भावना। परमार्…
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