ख़ाब सजाये कल की खातिर
जिस पल में जीनी थीं सदियां
आया वो इक पल की खातिर
बेच गिटार हुआ दीवाना
तेरी इस पायल की खातिर
ले आये दिल बुनकर अपना
सर्दी में कम्बल की खातिर
ठुकरा दी है जग की दौलत
इक तेरे आँचल की खातिर
ग़ालिब की गलियों में हम भी,
भटके गीत ग़ज़ल की खातिर
कैद किया वारिद को हमने
आज तिरे काजल की खातिर
रहती है अनमन पेड़ों में
मीठी उस कोयल की खातिर
मोड़ लिया मुँह सब रागों से
नदियों की कल कल की खातिर
जुल्म सहे कीचड़ के हमने
उस महबूब कमल की खातिर
किसको अपना समझे धरती
जोगिन है बादल की खातिर
आज हुई दिल से गुस्ताखी
छोड़ दिया सब कल की खातिर
रोहित गुस्ताख़ - दतिया (मध्यप्रदेश)