दिल की जागीर - ग़ज़ल - दिलशेर "दिल"

हुस्ने तदबीर ही है कुछ ऐसी। 
दिल की जागीर ही है कुछ ऐसी।

बस गई है वो जेहनो दिल में मेरे.
उस की तसवीर ही है कुछ ऐसी।

ख्वाब करता भी मैं बयाँ कैसे, 
क्यूँकि ताबीर ही है कुछ ऐसी।

क्यूँ है मशहूर ताज दुनिया में, 
उसकी तामीर ही है कुछ ऐसी।

जायका तो खराब होगा ही, 
सच की तासीर ही है कुछ ऐसी।

जो भी चाहा वही मिला ऐ 'दिल' 
अपनी तकदीर ही है कुछ ऐसी।

दिलशेर "दिल" - दतिया (मध्यप्रदेश)

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