उर की अभिव्यञ्जना - मुक्तक - डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"

उर    की   अभिव्यञ्जना समझ,
या     समझ    अन्तस्थल वेदना। 
अन्तर्व्यथा    कथानक     समझ, 
प्रमुदित   समझ  उर   सद्भावना।

परमार्थ  जीवन   अर्पण   समझ,
संतोष    वैभव    सुख   साधना।
करुणा  दया  ममता    समन्वित,
समधुर सरस उर अभिव्यञ्जना। 

दीन  हीन   क्लेशित  उर समझ,
परमुख अस्मिता  उर    भावना।
कुसुमित  वाटिका मकरन्द मय,
खुशियाँ  गन्ध   उर   सद्भावना।

अनुराग   सबजन  उर   समझ,
आहत   अन्तस्थल   दुर्भावना।
भारत  प्रेम रस  भक्ति   समझ,
पुरुषार्थ   सिञ्चित   आराधना। 

जग त्राण  उर   जीवन   समझ,
प्रभु   प्रीत  सतत  उर कल्पना।
बलिदान   जीवन   निज  वतन,
स्वप्निल  ध्येय बस उर अल्पना। 

महाशक्ति  भारत  स्वप्निल  समझ,
राष्ट्र   प्रगति  कीर्ति  सुख कामना।
खिलती प्रकृति नित गुप्त उर तल,
त्याग   शील  कर्म   उर   सर्जना।

जय भारत   वतन  गुंजित समझ,
तिरंगा  मान    उर   अभिव्यञ्जा।
वन्दे   मातरं  नित  गायन  समझ, 
बस  उर  में   बसी    प्रभु प्रार्थना।। 

डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" - नई दिल्ली

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