गजल मेरी - कविता - मयंक कर्दम

बांसुरी संग वीणा से बजती ग़ज़ल मेरी,
दूल्हे की दुल्हन सी चमकती गजल मेरी।

बारात में पैदल चलकर हीरे-मोती पहने,
बारातियों के संग यूं  नाचती गजल मेरी।

छाले पड़े  पैरों में,घुंघरू पहने  खुशी से,
कदम-कदम पर कदम उठाती गजल मेरी।

होठों पर गिरे बाल, हाथों से पीछे करके,
शहनाईयो साथ  सुर लगाती गजल मेरी।

चढ़ती बारात में,दूल्हे की बग्गी में बैठी,
बारातियों में खुशबू लुटाती ग़ज़ल मेरी।

थकान नहीं पैरों में, दुल्हन के आंसू पोछ,
दूल्हे संग  गाड़ी में  बिठाती गजल  मेरी।

विदाई समय में, दुल्हन को विदा करके,
मयंक के संग फूटकर  रोती गजल मेरी।

मयंक कर्दम - मेरठ (उत्तर प्रदेश)

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