प्रियतम - कविता - बजरंगी लाल

कलम रुक गई है,
कागज भिगो रहा हूँ।
          आँखों से अपने अश्क का,
           दरिया बहा रहा हूँ।।
होने ना पाए खारा,
सागर ए इस ज़िगर का।
             आ जाओ मेंरे प्रियतम,
             कब से बुला रहा हूँ।।
बिन तुम्हारे प्रियतम,
सागर ए सूखता है।
              बड़वाअनल की अग्नि से,
              दिन-रात जूझता है।।
आकर के कर दे बारिश,
तूँ प्यार की ऐ मौला।
              फिर से लहर उठेंगी,
              तूँ क्यों न बूझता है।।
बहता हुआ तूँ आजा,
तुझको समेंट लूँ मैं।
               दिल से तुझे लगाके,
               आँखों को सींच लूँ मैं।।
तुम बिन हुआ है पतझड़,
मौसम ए इस जहाँ का।
               बरसा दे प्यार इतना,
               इस जहाँ को सींच दूँ मैं।।

बजरंगी लाल - डीहपुर, दीदारगंज, आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश)

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