मै कैसे लिख दू - कविता - शेखर कुमार रंजन

मैं कैसे? लिख दू कि मेरे दोस्तों ने,
दुश्मनों की हर फर्ज निभाई हैं
उसने मुझे गिराने की कोशिश की, 
जिसे समझता रहा सगा भाई हैं।

मैं कैसे? लिख दू कि मेरे दोस्तों ने,
दुश्मनों की हर फर्ज निभाई हैं
एक दूसरे के साथ रहकर जीने,
मरने की कसमें कभी खाई हैं।

मैं कैसे? लिख दू कि मेरे दोस्तों ने,
दुश्मनों की हर फर्ज निभाई है
उसकी बहनों ने थी बाँधी राखी,
यह मेरी वही पतली सी कलाई है।

मैं कैसे? लिख दू कि मेरे दोस्तों ने,
दुश्मनों की हर फर्ज निभाई है
हर पर्व-त्योहारों में संग साथ बैठ,
प्यार से एक-दूसरें को खिलाई हैं।

मैं कैसे? लिख दू कि मेरे दोस्तों ने,
दुश्मनों की हर फर्ज निभाई हैं
जब-जब तकलीफे हुई हमें,
आँखों में आँसु संग में आई है।

मैं कैसे? लिख दू कि मेरे दोस्तों ने,
दुश्मनों की हर फर्ज निभाई हैं
रहस्य किसी का भी क्यों? न हो,
कोई किसी से नहीं छुपाई हैं।

मैं कैसे? लिख दू कि मेरे दोस्तों ने,
दुश्मनों की हर फर्ज निभाई है।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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