भगवान - कविता - माधव झा

हाथ मे त्रिशूल, वसहा सवार,
रोक लो अपनी जटा की धार,
नही  तो  निकल   पड़ेगे  अब,
सब  भक्तों  के  प्राण भगवान,

पहले तो कोरोना का मारा,
दूसरा और कोई न सहारा,
बन्द हो गई जीवन की चाल,
रोक लो अपनी जटा की धार,

कहाँ जाएंगे भक्त  बेचारे,
दोनो तरफ से घिरे हैं सारे,
कर दो थोड़ी राहत की बात,
रोक लो अपनी जटा की धार,

बन्द पड़े हैं मंदिर के द्वार,
कैसे  सेवा करू भगवान,
घर बैठे करता हैं माधब,
तुझको कोटि-कोटि प्रणाम,

माधव झा - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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