अब तो बता कोरोना - कविता - सतीश श्रीवास्तव

बहुत हो गया रोयें कहां तक बोलो अपना रोना,
कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना।
तुम आए तो बंद हो गये बड़े बड़े बाजार,
आ धमके तो चौपट हो गये बड़े बड़े व्यापार।
सुख का खाना सुख का जीवन छूटा सुख का सोना,
कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना।
पीड़ा हो गई सिर के ऊपर अब तो सही नहीं जाती,
हाय गरीब की इस धरती पर खाली कभी नहीं जाती।
पीड़ित हुआ है दुनियाभर का सचमुच कोना कोना,
कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना।
बदला सा परिवेश हुआ है बदला सकल समाज,
ध्वस्त हो गई अर्थव्यवस्था बदले रीति रिवाज।
कोई तो बतलाये आकर कब तक पड़ेगा ढोना,
कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना।
प्रभावित तो सभी हुए हैं कुछ ज्यादा कुछ थोड़ा,
लाइट टेंट हो बैंड या डीजे या हो बग्घी घोड़ा।
बिक न पाए कपड़ा लत्ता और न चांदी सोना,
कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना।
रिश्ते नाते फीके पड़ गए फीके हैं त्यौहार,
सूनी सूनी सड़कें गलियां सूना है संसार।
कोई तो आकर दिखलाये अपना जादू टोना,
कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना।
कोई दवा नहीं बन पाई चिंतित है विज्ञान,
कौन रूप में आए कोरोना सबके सब अंजान।
जल्दी दवा बनाओ ताकि जीवन पड़े न खोना,
कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना।
सरकारी आदेश को मानो और सभी निर्देश,
ताकि रहें सुरक्षित हम सब और हमारा देश।
अफवाहों से दूरी रखना बीज न विष के बोना,
कब तक विदा यहां से होगा अब तो बता कोरोना।

सतीश श्रीवास्तव - करैरा, शिवपुरी (मध्यप्रदेश)

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