क्या लिखू - कविता - शेखर कुमार रंजन

कभी मन करता है कि,
गरीबों की गरीबी लिखू
तो कभी मन करता है कि,
मजलूमों की बेबसी लिखू।

कभी मन करता है कि,
भ्रष्टाचारियों की करतूतें लिखू
तो कभी मन करता है कि,
भ्रष्ट प्रशासन की कहानी लिखू।

कभी मन करता है कि,
अनपढ़ नेताओं की रवानी लिखू
भ्रष्टाचार की ओर बढ़ते हुए तो,
कभी बेरोजगारी की कहानी लिखू

कभी मन करता है कि,
शिक्षा में हो रही गिरावट लिखू
तो कभी मन करता है कि
झूठी हमदर्दी की मिलावट लिखू।

कभी मन करता है कि,
भ्रष्ट राजनीति लिखू तो
कभी मन करता है कि,
सरकार की बुरी रणनीति लिखू।

कभी मन करता है कि,
गर्व से सैनिकों की शहादत लिखू
तो कभी मन करता है कि,
देश की नेताओं की हरकतें लिखू।

कभी मन करता है कि,
देश के गिरतें जी. डी. पी लिखू
तो कभी मन करता है कि,
लड़खड़ाता अर्थव्यवस्था लिखू।

कभी मन करता है कि,
अदृश्य दुश्मन कोरोना लिखू
तो कभी मन करता है कि,
भूखे गरीबों का रोना लिखू।

कभी मन करता है कि,
बेरोजगारी में बीता जवानी लिखू
तो कभी मन करता है कि
सरकार की मनमानी लिखू।

शेखर कुमार रंजन - बेलसंड, सीतामढ़ी (बिहार)

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