मुस्कुराते रहो - ग़ज़ल - ममता शर्मा "अंचल"

मुस्कुराते रहो, गुनगुनाते रहो
प्यार में डूबकर नित नहाते रहो

दीप का साथ  बाती से छूटे नहीं
तेल से बातियों को मिलाते रहो

हो न पाए मुलाक़ात गर, तो सुनो
तुम ख़्यालों में ही आते-जाते रहो

बिगड़ी तक़दीर मेरी सँवर जाएगी
धड़कनों में ही आकर समाते रहो

दोस्ती में न दो उलझनों को जगह
भूल आपस की खुद ही भुलाते रहो।।।।

ममता शर्मा "अंचल" - अलवर (राजस्थान)

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